क्या हमारे कुछ देशवासियों को इस बात पर आश्चर्य हुआ कि गुजरात के दो भाई जिन पर आरोप है की वे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं, कंप्यूटर में पोस्टग्रेजुएट हैं ?
अगर ऐसा है तो दोष उन्ही का है क्योंकि कई देशभक्त शिक्षाविद इस कमी को कई वर्षों से उजागर कर रहे हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली केवल डिग्री या डिप्लोमा देने वाली दुकानें बन चुकी हैं और इनसे एक सम्पूर्ण नागरिक पैदा नहीं किया जायेगा।
चाणक्य नीति कहती है कि जो शिक्षा यह नहीं सिखाती कि राष्ट्र सर्वोपरी है, राष्ट्र की रक्षा सर्वोपरी है, वह शिक्षा व्यर्थ है ! चाणक्य ने तो स्वयं को प्रस्तुत किया था कि वह पहला, राष्ट्रधर्म का पाठ विद्यार्थियों को पढ़ाना चाहेंगे।
इन दिनों जो गतिविधियां विश्व विद्यालयों में हो रही हैं जिसमे विभिन्न छात्र संघ एक दूसरे के विरुद्ध हैं वे भी बहुत चिंता का विषय है। जैसे हमने सफाई आंदोलन एक राष्ट्रव्यापी तौर पर छेड़ा है, समय आ गया है कि हम हमारी शिक्षा प्रणाली की भी सफाई करें। शायद इसके लिए हमें राष्ट्र के शीर्ष शिक्षा विदों को संगठित करना चाहिए. यह तो सर्विदित है की राष्ट्र धर्म का पाठ स्कूल स्तर पर ही अधिक कारगर होगा। हमें देश के युवाओं में राष्ट्रभक्ति जगानी ही होगी, भले ही यह निर्णय लेना पड़े कि हरेक युवक को कुछ वर्ष सेना में सर्विस करना अनिवार्य होगा।
कहते हैं कि चीनी दार्शनिक ह्वेनसांग भारत से नौका में अपने दो शिष्यों और नाविक के साथ चीन लौट रहे थे। नौका मेंबहुत सी किताबें थीं जो नालंदा और तक्षशिला विश्व विद्यालयों ने भेंटकी थी. नौका ज्ञान से भरी थी ! अचानक मौसम ख़राब हो गया -नाविक बहुत कठिनाई से नाव सम्हाल रहा था ! मौसम और ख़राब हुआ तो नाविक ने कहा 'नौका का वजन कम करना होगा।’ बिना किसी विलम्ब के दोनों शिष्यों ने एक दूसरे की तरफ देखा और उफनते समुद्र में कूदकर अपनी जान दे दी।
(शायद गुरु की ओर इसलिए नहीं देखा होगा कि उनके चेहरे पर ग्लानि के भाव न दिखें !) ज्ञान चीन पहुंचा और, आज देखिये, शायद उसी ज्ञान की वजह से चीन एक विश्व शक्ति बन चुका है और अमेरिका को गंभीर चुनौती दे रहा है।
क्या आज के भारतीय छात्रों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है ? हमें भी एक ऐसे समाज और शिक्षा प्रणाली का भागीदार बनना होगा जहाँ शिक्षा और ज्ञान के मंदिर राजनीति का अखाडा न बने और जहाँ ज्ञान परम हो डीग्री नहीं |
अगर ऐसा है तो दोष उन्ही का है क्योंकि कई देशभक्त शिक्षाविद इस कमी को कई वर्षों से उजागर कर रहे हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली केवल डिग्री या डिप्लोमा देने वाली दुकानें बन चुकी हैं और इनसे एक सम्पूर्ण नागरिक पैदा नहीं किया जायेगा।
चाणक्य नीति कहती है कि जो शिक्षा यह नहीं सिखाती कि राष्ट्र सर्वोपरी है, राष्ट्र की रक्षा सर्वोपरी है, वह शिक्षा व्यर्थ है ! चाणक्य ने तो स्वयं को प्रस्तुत किया था कि वह पहला, राष्ट्रधर्म का पाठ विद्यार्थियों को पढ़ाना चाहेंगे।
इन दिनों जो गतिविधियां विश्व विद्यालयों में हो रही हैं जिसमे विभिन्न छात्र संघ एक दूसरे के विरुद्ध हैं वे भी बहुत चिंता का विषय है। जैसे हमने सफाई आंदोलन एक राष्ट्रव्यापी तौर पर छेड़ा है, समय आ गया है कि हम हमारी शिक्षा प्रणाली की भी सफाई करें। शायद इसके लिए हमें राष्ट्र के शीर्ष शिक्षा विदों को संगठित करना चाहिए. यह तो सर्विदित है की राष्ट्र धर्म का पाठ स्कूल स्तर पर ही अधिक कारगर होगा। हमें देश के युवाओं में राष्ट्रभक्ति जगानी ही होगी, भले ही यह निर्णय लेना पड़े कि हरेक युवक को कुछ वर्ष सेना में सर्विस करना अनिवार्य होगा।
कहते हैं कि चीनी दार्शनिक ह्वेनसांग भारत से नौका में अपने दो शिष्यों और नाविक के साथ चीन लौट रहे थे। नौका मेंबहुत सी किताबें थीं जो नालंदा और तक्षशिला विश्व विद्यालयों ने भेंटकी थी. नौका ज्ञान से भरी थी ! अचानक मौसम ख़राब हो गया -नाविक बहुत कठिनाई से नाव सम्हाल रहा था ! मौसम और ख़राब हुआ तो नाविक ने कहा 'नौका का वजन कम करना होगा।’ बिना किसी विलम्ब के दोनों शिष्यों ने एक दूसरे की तरफ देखा और उफनते समुद्र में कूदकर अपनी जान दे दी।
(शायद गुरु की ओर इसलिए नहीं देखा होगा कि उनके चेहरे पर ग्लानि के भाव न दिखें !) ज्ञान चीन पहुंचा और, आज देखिये, शायद उसी ज्ञान की वजह से चीन एक विश्व शक्ति बन चुका है और अमेरिका को गंभीर चुनौती दे रहा है।
क्या आज के भारतीय छात्रों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है ? हमें भी एक ऐसे समाज और शिक्षा प्रणाली का भागीदार बनना होगा जहाँ शिक्षा और ज्ञान के मंदिर राजनीति का अखाडा न बने और जहाँ ज्ञान परम हो डीग्री नहीं |
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