कई भविष्यदृष्टा मानते हैं कि अगला विश्व युद्ध जल को लेकर होगा. कहा जाता है कि किसी भी झगडे के होने के तीन कारण हो सकते हैं; जर (धन), जोरू (स्त्री) या जमीन। हमें इस मान्यता में अब 'जल' भी जोड़ना होगा.
हर पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे इस सृष्टि के मालिक नहीं हैं - वे तो केवल ट्रस्टी हैं जिन्हे यह संसार अगली पीढ़ी को कम -से -कम यथास्थिति सौपना है, अगर बेहतर स्थिति में सौंप सकें तो सोने में सुहागा ! ज़ाहिर है कि हमें पानी की एक एक बून्द बचानी होगी। और इसमें हमारे प्राकृतिक स्त्रोतों का बचाव व रख-रखाव शामिल है।
कितने हैरानी का विषय है कि हमारे जिस देश ने विश्व को सभ्यता का पाठ पढ़ाया जिसमे नदियों का संरक्षण शामिल है, उसी देश में सरस्वती जैसी पावन नदी लुप्तप्राय हो जाती है !! हमारी प्राचीन सभ्यता में नदियाँ का सभी स्तरों पर, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक महत्व है। और यह जलस्त्रोत केवल इंसान की बपौती नहीं है; इसपर सभी जीव जंतुओं का समान अधिकार है।
हर पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे इस सृष्टि के मालिक नहीं हैं - वे तो केवल ट्रस्टी हैं जिन्हे यह संसार अगली पीढ़ी को कम -से -कम यथास्थिति सौपना है, अगर बेहतर स्थिति में सौंप सकें तो सोने में सुहागा ! ज़ाहिर है कि हमें पानी की एक एक बून्द बचानी होगी। और इसमें हमारे प्राकृतिक स्त्रोतों का बचाव व रख-रखाव शामिल है।
कितने हैरानी का विषय है कि हमारे जिस देश ने विश्व को सभ्यता का पाठ पढ़ाया जिसमे नदियों का संरक्षण शामिल है, उसी देश में सरस्वती जैसी पावन नदी लुप्तप्राय हो जाती है !! हमारी प्राचीन सभ्यता में नदियाँ का सभी स्तरों पर, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक महत्व है। और यह जलस्त्रोत केवल इंसान की बपौती नहीं है; इसपर सभी जीव जंतुओं का समान अधिकार है।
इस दॄष्टि से मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पिछले पांच महीनों
से की गयी नर्मदा सेवा यात्रा अति सराहनीय है।
आज के दिन यह करीब साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर दूरी तय कर अमरकंटक लौट आयी है। उल्लेखनीय
है कि इस यात्रा के दौरान १६ जिलों में १०००
से ज्यादा जनसंवाद हुए और २५ लाख लोगों ने पर्यावरण संरक्षण का प्रण लिया। अब इसमें वाटर
ट्रीटमेंट
प्लांट लगाए जायेंगे,
जैविक
खेती
व
लघु
उद्योग
को
बढ़ावा
दिया
जाएगा
। नदी
के
दोनों
तटों
पर
पौधरोपण
कार्यक्रम
चलाये
जायेंगे
जिससे
शुद्ध
पर्यावरण
के
निर्माण
को
भी
बल
मिलेगा। इस
यात्रा
से
कई
सामाजिक
मुद्दों
को
जोड़ा गया
है। वास्तव में यह यात्रा एक जनांदोलन बन गयी
है।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के आगमन से लोगों में पर्यावरण संरक्षण की भावना और भी बलवती हो गयी है।
इस बात को हम भली-भांति जानते हैं कि सिर्फ सरकार नदियों का संरक्षण नहीं कर सकती; इसमें हरेक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है। हम इसमें माला-फूल या पूजा की सामग्री न डालें, कूड़ा न फ़ेंके , पशुओं को न नहलाएं, मूर्तियों का विसर्जन न करें व कपड़े न धोएं।
एक महान कार्य संपन्न हुआ है लेकिन हम इसे समापन समझने की भूल नहीं कर सकते। यहाँ मुझे एक पुराने गाने की पंक्ति याद आती है
'पंछी, नदिया, पवन के झोंके,
कोई सरहद ना इन्हे रोके !'
सो, सरहद के पार भी ऐसे सत्प्रयास किये जाने चाहिए। मध्य प्रदेश के इस स्वर्णिम उदाहरण का बाकी राज्यों ने अनुसरण करना चाहिए।
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