Saturday, 10 December 2016

भारत की सबसे पुरानी रेजिमेंट 'राजपूताना राइफल्स' से जुड़ी ये 10 बातें हर भारतीय को जाननी चाहिए


राजपूताना राइफल्स, भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है। साथ ही राजपूताना राइफल्स’ इंडियन आर्मी का सबसे पुराना और सम्मानित राइफल रेजिमेंट है। इसकी स्थापना 1775 में की गई थी, जब तात्कालिक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजपूत लड़ाकों की क्षमता को देखते हुए उन्हें अपने मिशन में भर्ती कर लिया। दिल्ली में स्थित राजपूताना म्यूजियम राजपूताना राइफल्स के समृद्ध इतिहास की बेहतरीन झलक है. यह पूरे भारत के बेहतरीन सेना म्यूजियमों में से एक है।

राजपूताना राइफल्स की 10 खूबियाँ –

1- राजपूताना राइफल्स को मुख्य रूप से पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए जाना जाता है। बता दे कि राजपूत रेजिमेंट और राजपूताना राइफल्स दो अलग-अलग आर्मी यूनिट हैं।

2 - 1921 में इसे ब्रिटिश इंडियन आर्मी के तौर पर विकसित किया गया था। 1953-1954 में वे कोरिया में चल रहे संयुक्त राष्ट्र संरक्षक सेना का हिस्सा थे. साथ ही वे 1962 में कौंगो में चले संयुक्त राष्ट्र मिशन का भी हिस्सा थे।

3- 1945 से पहले इसे 6 राजपूताना राइफल्स के तौर पर जाना जाता था क्योंकि, इसे तब की ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 6 रेजिमेंट्स के विलय के बाद बनाया गया था।

4- 1778 में इसे 9वीं बटालियन बंबई सिपाही के तौर पर पुर्नगठित किया गया था। 1921 में इस रेजीमेंट को अंतिम रूप देने से पहले 5 बार पुर्नगठित किया गया।

5- राजपूतों के अलावा, इस रेजीमेंट में जाट, अहीर, गुज्जर और मुस्लिमों की भी एक बड़ी संख्या है।

6- राजपूताना राइफल्स 1999 में हुए कारगिल युद्ध में लड़ने वाली 7 आर्मी यूनिट्स में से पहली यूनिट थी। इस युद्ध् में बहादुरी के लिए आधिकारिक तौर पर सम्मान पत्र से नवाजा गया था।

7- थम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राजपूताना राइफल्स के लगभग 30,000 सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी। राजपूताना राइफल्स का युद्धघोष है… “राजा रामचन्द्र की जय”

8- राजपूताना राइफल्स का आदर्श और सिद्धांत वाक्य “वीर भोग्या वसुंधरा” है, जिसका अर्थ है कि ‘केवल वीर और शक्तिशाली लोग ही इस धरती का उपभोग कर सकते हैं।

9- राजपूताना राइफल्स के ज्यादातर सदस्य अपनी विशेष शैली की मूछों के पूरे विश्व में फेमस हैं।

10-मध्यकालीन राजपूतों का हथियार कटार और बिगुल राजपूत रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह है।

Monday, 17 October 2016

सिर्फ तीन तलाक ही नहीं, समाज में प्रचलित ये पाँच प्रथाएं भी हैरान करने वाली हैं


भारत में तीन तलाक़ के मुद्दे पर बहस गर्म है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार को तीन तलाक के मुद्दे में दखल न देने को कहा है। सरकार ने तीन तलाक समेत समाज में प्रचलित कई कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए एक प्रश्नावली भरवा रही है। इस प्रश्नावली को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बनाया आयोग लेकर आया जिसे 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। भारत में ऐसी कई प्रथाएँ हैं जो हैरान करती हैं। इन प्रथाओं को कानूनी मान्यता तो नहीं है लेकिन समाज में इन्हीं कुछ जगहों पर स्वीकृति मिली हुई है। आइए आज हम आपको कुछ ऐसी ही प्रथाएँ बताते हैं…

1. तीन तलाक़
तीन तलाक मुस्लिमों में आज भी खूब प्रचलित है। तीन तलाक मतलब तलाक-तलाक-तलाक बोल दो और पति-पत्नी के बीच रिश्ता खत्म। यह एक तरह का मौखिक तलाक है जिससे मुस्लिम महिलाओं में भारी असंतोष फैल रहा है। इसके बावजूद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस कानून के रास्ते में ढाल बनकर खड़ा रहना चाहता है।

2. पॉलीगेमी या बहुपत्नी प्रथा
इस प्रथा में एक व्यक्ति एक से अधिक शादियाँ करता है। सिविल मैरिज एक्ट के तहत की गई शादियों में यह बहुपत्नी विवाह गैर कानूनी है। साल 1860 आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत ईसाइयों और 1995 में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत हिंदुओं में दूसरी शादी को गैरकानूनी माना गया जिनकी पहली पत्नी जीवित हो। मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से मुस्लिमों को पॉलीगेमी की छूट दी गई है। इससे मुस्लिम महिलाओं में काफी रोष है।

3. प़ॉलियेंडरी यानि बहु-पति प्रथा
एक जमाने में बहु-पत्नी प्रथा की तरह ही बहु-पति प्रथा का भी प्रचलन था। फिलहाल इसका चलन बहुत कम हुआ है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और तिब्बत की सीमा के पास के कुछ इलाकों में ये आज भी दिख जाता है। इस प्रथा की प्रेरणा महाभारत से ली जाती है। कहा जाता है कि एक द्रौपदी के पाँच पति थे। आयोग ने अपनी प्रश्नावली में इस प्रथा के बारे में भी सुझाव माँगे हैं।

4. मुतआ निकाह यानि कुछ महीनों की शादी
ईरान के शिया मुसलमानों में इसका प्रचलन रहा है। ये एक तरह का अल्पकालिक समझौता होता है जिसमें दो या तीन महीने के लिए विवाह किया जाता है। अब इसका चलन कम हो रहा है।

5. मैत्री करार या एक प्रकार का लिव इन रिलेशनशिप
मैत्री प्रथा गुजरात में आज भी प्रचलित है और इसे कानूनी मान्यता भी मिली हुई है। इसमें महिला और पुरुष मजिस्ट्रेट के सामने करार करके एकसाथ रहते हैं। इसमें पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है। दोनों कपल को वयस्क होना चाहिए।

Friday, 12 August 2016

विजय रूपानी ने ली गुजरात सीएम पद की शपथ, कैबिनेट में 25 मंत्री शामिल


गुजरात के 16 वें मुख्यमंत्री के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के नेता विजय रूपानी ने मुख्यमंत्री के तौर पर रविवार को गांधीनगर में शपथ ली। यहां महात्मा मंदिर में आयोजित समारोह में राज्यपाल ओपी कोहली ने रूपानी के अलावा उपमुख्यमंत्री नीतिन पटेल तथा कैबिनेट स्तर के सात अन्य मंत्रियों और राज्य स्तर के 16 मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। विजय रूपानी ने अपनी कैबिनेट में कुल 25 मंत्रियों को शामिल किया। कैबिनेट में जो 25 मंत्री शामिल किए गए हैं, उनमें से 8 पटेल हैं। इनमें उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल भी शामिल हैं। मंत्रिमंडल में 8 पटेल नेताओं के अलावा, 14 जनरल कैटेगरी के विधायक हैं, जबकि 7 ओबीसी, 3 एसटी और 1 अनुसूचित जाति के नेता हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन सरकार के 9 मंत्रियों की छुटटी हो गई, वहीं 9 विधायक पहली बार मंत्री बने।  विजय रूपानी के अलावा नितिन पटेल का नाम भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल था लेकिन आखिरकार सियासी समीकरण रूपानी के पक्ष में बने और नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा।
शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली, स्थानीय भाजपा सांसद और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल, केद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, पुरूषोत्तम रूपाला और पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत कई राजनेता और अन्य गणमान्य सदस्य मौजूद थे।
पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने कुछ दिन पहले ही फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर इस्तीफा देने के अपने फैसले की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि वह इस पद से हट जाना उपयुक्त समझती हैं क्योंकि वह इस साल नवंबर में 75 की हो जाएंगी। ऐसा माना जाता है कि प्रधानमंत्री ने केंद्र और राज्यों के मंत्रिमंडल में मंत्रियों के लिए यह ऊपरी उम्र सीमा तय कर रखी है।

आज भारत की अधिकांश आम जनता भले ही विजय  रूपानी का नाम पहली बार सुन रही हों, लेकिन वे बीजेपी के इनर सर्किल के जाने-माने चेहरे हैं। 60 वर्षीय विजय रूपानी जैन समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और गुजरात प्रांत में बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे हैं। वे बीजेपी संगठन पर अच्छी पकड़ रखते हैं। वे राजकोट पश्चिम से विधायक रहे हैं । उनके समक्ष गुजरात सरकार में परिवहन, वॉटर सप्लाई और लेबर एंड एम्प्लॉय जैसे मंत्रालय भी रहे हैं । 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को गुजरात के नए मुख्यमंत्री विजय रूपानी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को बधाई दी। मोदी जी ने ट्वीट कर कहा, ‘विजय रूपानी, नितिनभाई पटेल और अन्य को बधाई। इन्होंने गुजरात की विकास यात्रा को जारी रखने के लिए अपनी नई पारी शुरू की है।मैं आनंदीबेन की समर्पित सेवा की प्रशंसा करता हूं। जिन्होंने कई वर्षों तक गुजरात के लोगों के लिए अथक काम किया।

विश्व का सबसे बड़ा खेल आयोजन – ओलंपिक


मनुष्य के जीवन में आरंभ  से ही खेलों का महत्व रहा हैं। खेलों के बिना मनुष्य अधूरा हैं। प्राचीन समय में खेल ही मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। आज के युग में मनोरंजन के कई साधन उपलब्ध हैं परंतु खेलों का महत्व वैसा का वैसा ही बना हुआ है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य ठीक रहता है, वहीँ मनोरंजन भी होता हैं। खेल अनेक प्रकार के होते हैं तथा इनका आयोजन चलता ही रहता हैं। लेकिन एक खेल आयोजन ऐसा हैं जिसे संसार भर का सबसे बड़ा खेल आयोजन माना हैं जिसका नाम है 'ओलंपिक'।  'ओलंपिक' खेल के अंतर्गत बहुत सारे खेल आते हैं, इसमें दुनिया भर के चुने हुए खिलाडी ही भाग लेते हैं। इन खेलों में अनेक प्रतियोगिताएँ होती हैं। ओलंपिक खेल आज भी उतने ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हैं जितना कि वह प्रारंभिक वर्षों में हुआ करते थे। इनमें भाग लेना और कोई स्थान प्राप्त करना सबसे बड़े सम्मान व गौरव की बात होती है। जो देश  जितने अधिक पदक (मेडल्स) जीतता है वह देश उतना  महान और लोकप्रिय माना जाता है। यह खेल हर चार वर्षों के अंतराल में आयोजित होता है, जिसमें पूरे विश्व के विभिन्न देश विभिन्न खेलों में भाग लेते हैं।

ओलंपिक ध्वज पर आपस में पिरोए हुए पाँच रिंग्स मूल रूप से पाँचों महाद्वीपों की मित्रतापूर्ण एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब ये अन्तर्राष्ट्रीय मित्रता का प्रतीक हैं। इन रिंग्स  के नीले, पीले, काले, हरे तथा लाल रंग उन रंगों के सूचक हैं, जो विभिन्न दलों के ध्वजों में होते हैं एवं सफ़ेद पृष्टभूमि 'शांति' का प्रतीक है।
भारत देश भी आज़ादी के पूर्व से ही ओलंपिक खेलों में प्रतिभागी होता रहा हैं। ओलंपिक खेलों के साथ भारत की सहभागिता उस समय प्रारम्भ हुई जब यह ब्रिटिश शासन की गुलामी में था। भारत के राष्ट्रीय खेल 'हॉकी' ने वर्ष 1928 से 1956 की अवधि में लगातार छः ओलंपिक खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाए हैं। उस समय पूरे विश्व में भारतीय हॉकी को शीर्ष स्थान प्राप्त था।  भारतीय खिलाडियों ने ओलंपिक खेलों की कई प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया जिसमें तीरंदाजी, हॉकी, फुटबॉल, कुश्ती, बैडमिंटन, टेनिस, एथलेटिक्स आदि प्रमुख हैं। आज तक के ओलंपिक खेलों में भारत का सबसे अच्छा प्रदर्शन वर्ष 2012 मेँ लंदन में आयोजित ओलंपिक खेलों में किया था। भारत ने लंदन ओलंपिक खेलों में 2 रजत तथा 4 कांस्य पदक प्राप्त किये। भारत में केंद्र सरकार द्वारा एक भारतीय ओलंपिक संगठन की स्थापना की हैं, जो भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई हैं।
भारत का ओलंपिक खेलों में अन्य देशों की तुलना में प्रदर्शन अच्छा नहीं माना जा सकता हैं।  चीन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों के पदकों की संख्या 100 से अधिक रहती हैं। ओलंपिक खेलों में भारत के पिछड़ेपन के कई कारण हैं। हमें प्रोत्साहन और बढ़ावा देने की बहुत आयश्यकता हैं। भारतीय खिलाडियों  की ओलंपिक खेलों में भाग लेने की सबसे बड़ी चुनौती उनके वित्तीय मामलों तथा प्रशासनिक प्रक्रियाओं में उलझना होता है।  भारतीय खिलाड़ियों को जो एशियाड या अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में  अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उन्हें भारत सरकार को उचित प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण भी प्रदान करना चाहिए तथा समिति को निष्पक्ष तौर पर कार्य करना चाहिए, ताकि खिलाडी  ओलंपिक खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर पाए।

भारत में सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों की कमी नहीं है, अभाव है तो केवल उनकी प्रतिभाओं को पहचान सकने की और उन्हें बेहतर मंच प्रदान करने की। भारत देश में खेल प्रतिभाओं की संख्या अधिक है, उन्हें तराशने और उचित प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है, ओलंपिक खेलों जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भारत शीर्ष स्थान अवश्य प्राप्त कर सकता हैं।