Monday 1 August 2016

अज्ञानता का अंधकार, शिक्षा से होगा सुधार


”तमसो मा ज्योतिर्गमय”अर्थात् अधंकार से मुझे प्रकाश की ओर ले जाओ । यह प्रार्थना भारतीय संस्कृति का मूल स्तम्भ है । प्रकाश में व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देता है, किन्तु  अन्धकार में नहीं। प्रकाश से यहाँ तात्पर्य ज्ञान से है ।इसी प्रकार ज्ञान के द्वारा मनुष्य के अंदर अच्छे विचार प्रवेश करते हैं एवं बुरे विचार बाहर निकलते हैं। शिक्षा का क्षेत्र सीमित न होकर विस्तृत है। व्यक्ति जीवन से लेकर मृत्यु तक शिक्षा का पाठ पढ़ता है। हमारे यहाँ प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में होती थी। छात्र पूर्ण शिक्षा ग्रहण करके ही घर वापिस लौटता था।  परंतु समाज के वर्ण व्यवस्था पर आधारित होने के कारण हर वर्ग को शिक्षा पाने का अधिकार प्राप्त नहीं था। धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन आया और वर्ण व्यवस्था का विरोध होने लगा। आज के समय समाज में  शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार बन गया हैँ। भारतीय संविधान के अनुसार हर नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति  या धर्म का हो उसे शिक्षा पाने का पूर्ण अधिकार हैँ।

वर्तमान में शिक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा है, सभी अपने  बच्चों को शिक्षित बनना चाहते हैं।  अच्छी शिक्षा के मायने बदल गए हैं, पूर्व के समय  में  शिक्षा के द्वारा चरित्र निर्माण पर जोर दिया जाता था, जिसके लिए धार्मिक और नीति संबंधी शिक्षा दी जाती थी। परंतु आज के समय में  उद्देश्य है - मौलिक रूप से कैरियर (भविष्य ) का निर्माण करना। इसी कारण शिक्षा में ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी का अधिक समावेश हो गया है। आज जगह-जगह सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों में शिक्षण कार्य होता है। वहां पर शिक्षक भिन्न-भिन्न विषयों की शिक्षा देते हैं।

छात्र जब पढ़ने के लिए जाता है तब उसका मानसिक स्तर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगता है। इन सब प्रश्नों का उत्तर हमें शिक्षा के द्वारा मिलता है। जैसे-जैसे हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे हमारा ज्ञान विस्तृत होता जाता है। ज्ञान का अर्थ केवल शब्द ज्ञान नहीं अपितु अर्थ ज्ञान है।
आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा प्राप्त किये बिना मनुष्य की उन्नति नहीं हो सकती। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैँ परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके।

उत्तम विद्या लीजिए यद्यपि नीच पै होय।
परयौ अपावन ठौर में कंचन तजत न कोय ।।

शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान के प्रकाश से शुभाशुभ, भले बुरे की पहचान कराके आत्म विकास की प्रेरणा देती है। उत्रति का प्रथम क्रम शिक्षा है। उसके अभाव में हम लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते।
शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है। शिक्षा को जन-जन तक फ़ैलाने के लिए तीव्र प्रयासों की आवश्यकता हैं। इक्कीसवीं सदी में भारत का हर नागरिक शिक्षित हो, इसके लिए सभी जरुरी कदम उठने होंगे। सर्व शिक्षा को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता हैं।


No comments:

Post a Comment